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बॉर्डर के लिए तैयार किए जा रहे ‘आयरन मैन’, जवानों की सुरक्षा के साथ दुश्मनों की बर्बादी की पूरी तैयारी

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DRDO Humanoid Robot: भारत-पाक तनाव और सीमा पर बढ़ते खतरों के बीच DRDO एक क्रांतिकारी कदम उठा रहा है। पुणे में DRDO के वैज्ञानिक एक ह्यूमनॉइड रोबोट पर काम कर रहे हैं, जो जोखिम भरे सैन्य मिशनों में सैनिकों की जगह ले सकेगा। इसका मकसद जंगल, पहाड़ और अन्य कठिन इलाकों में खतरनाक कार्यों को अंजाम देना है, ताकि सैनिकों की जान को खतरा कम हो।

DRDO की पुणे स्थित रिसर्च एंड डेवलपमेंट इस्टैब्लिशमेंट लैब में यह ह्यूमनॉइड रोबोट विकसित किया जा रहा है। इसका मुख्य उद्देश्य सैनिकों को जोखिम भरे मिशनों से बचाना है, जैसे कि बम डिफ्यूज करना, जंगल में टोही मिशन, और दुश्मन के इलाकों में निगरानी। इस रोबोट को AI और मशीन लर्निंग तकनीक से लैस किया जा रहा है, ताकि यह स्वचालित रूप से फैसले ले सके और कठिन परिस्थितियों में भी काम कर सके।

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DRDO के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. रवि शंकर ने बताया, “हमारा लक्ष्य 2027 तक इस प्रोजेक्ट को पूरा करना है। प्रोटोटाइप का टेस्ट सफल रहा है, और अब हम इसे और उन्नत बनाने पर काम कर रहे हैं।” रोबोट को इस तरह डिज़ाइन किया जा रहा है कि यह 50 किलो तक वजन उठा सके, 10 किमी/घंटा की रफ्तार से चल सके, और 48 घंटे तक बैटरी बैकअप दे सके।

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अब तक दो प्रोटोटाइप बनाए जा चुके हैं, जिन्हें पुणे के पास जंगल और पहाड़ी इलाकों में टेस्ट किया गया है। टेस्ट में रोबोट ने बाधाओं को पार करने, निगरानी करने, और हल्के हथियारों को संभालने में सफलता दिखाई है। लेकिन विशेषज्ञों ने इसकी समयसीमा पर सवाल उठाए हैं। रक्षा विशेषज्ञ कर्नल राजीव शर्मा का कहना है, “इस तरह की तकनीक को पूरी तरह तैयार होने में 15-20 साल लग सकते हैं। AI अभी भी मानव निर्णय की बराबरी नहीं कर सकता, खासकर जटिल युद्ध परिस्थितियों में।”

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बताते चलें कि 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए आतंकी हमले और उसके बाद शुरू हुए ऑपरेशन सिंदूर ने सैन्य तकनीक की जरूरत को और बढ़ा दिया है। इस ऑपरेशन में 7 मई को भारत ने 9 आतंकी ठिकानों को नष्ट किया, लेकिन इस दौरान कई सैनिक भी शहीद हुए। ऐसे में, ह्यूमनॉइड रोबोट जैसे प्रोजेक्ट सैनिकों की जान बचाने में अहम साबित हो सकते हैं।

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