समस्तीपुर: ग्रामीण बैंक का आईपीओ जारी करने के विरोध में बैंक कर्मियों ने काला बिल्ला लगाकर जताया विरोध
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समस्तीपुर :- सरकार द्वारा ग्रामीण बैंक को लेकर आईपीओ जारी करने के विरोध में बैंक कर्मी आंदोलित हो उठे। बैंक कर्मियों ने काला बिल्ला लगाकर कार्य शुरू कर दिया है। सरकार द्वारा जारी किए गए आईपीओ को बैंक कर्मी निजीकरण की ओर बढ़ाया गया कदम बताया है। ज्वाइन्ट फोरम ऑफ ग्रामीण बैंक यूनियन्स के संयोजक डीएन त्रिवेदी ने कहा कि सरकार अगर ग्रामीण बैंक का आईपीओ जारी करने का निर्देश वापस नहीं लेती है तो शीत कालीन सत्र में संसद का घेराव किया जायगा।
क्षेत्रीय इकाई समस्तीपुर के सचिव वेद प्रकाश चौधरी ने कहा ग्रामीण बैंक के आईपीओ लाने से आम जनता को परेशानी का सामना करना पड़ सकता हैं। उन्होंने कहा कि ग्रामीण बैंक की स्थापना ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे किसानों, खेतिहर मजदूरों और कारीगरों को सस्ते व्याज पर ऋण और अन्य सुविधाएं प्रदान करने के उद्देश्य से आरआरबी अधिनियम, 1975 के तहत किया गया था।
पांच दशक के दौरान ग्रामीण बैंक ने आम आदमी के बैंक की छवी प्राप्त कर ली है। इसकी कुल शाखाएं बिहार में 2110 तथा देशभर में 21892 है। जिसके ग्राहक ग्रामीण और अर्द्ध शहरी क्षेत्र में कार्यरत है। ग्रामीण बैंक द्वारा अपने कुल ऋण का 90 फीसद प्राथमिकता वाले क्षेत्र अर्थात लघु व सीमान्त किसान, छोटे कारोबारी व दस्तकारों को सस्ते ब्याज दर पर दिए हैं।
परन्तु अब ज्यादा पूंजी बाजार से जुटाने के उद्देश्य से ग्रामीण बैंक कानून 1976 को संशोधित किया गया है जिसके तहत ऐसे बैंकों को केंद्र, राज्यों और प्रायोजक बैंकों के अलावा अन्य स्रोतों से पूंजी जुटाने की अनुमति दी गई थी। वर्तमान में, केंद्र की आरआरबी में 50 प्रतिशत हिस्सेदारी है, जबकि 35 प्रतिशत और 15 प्रतिशत क्रमशः संबंधित प्रायोजक बैंकों और राज्य सरकारों के पास हैं। जिसका कुप्रभाव उनके सेवाशर्त तथा गरीब ग्रामीण जनता के बस्ते दर पर ऋण मुहैया कराने पर भी पड़ सकता है। क्योंकि निजीकरण के बाद बैंक का उद्देश्य वेलफेयर के बजाए अधिक से अधिक मुनाफा अर्जित करना हो जाएगा।