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नीतीश पहली बार सदन पहुंचे, लालू यादव बने विपक्ष के नेता; बिहार में नौवीं विधानसभा का चुनाव था खास

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बिहार में नौवीं विधानसभा का चुनाव कई मायने में खास रहा। इस चुनाव में कांग्रेस की ताकत में और इजाफा हुआ, लेकिन बिहार की राजनीति में एक बड़ी ताकत के रूप में उसका पटाक्षेप भी हो गया। यह अंतिम चुनाव था जब वह राजनीतिक महाशक्ति के रूप में बिहार में इस दल ने शासन किया। लोकदल ने मुख्य विपक्षी दल के रिक्त स्थान को भरा और बड़ी ताकत के रूप में उभरा। उसने कांग्रेस के बाद सर्वाधिक सीटें भी जीतीं। यही वह समय था, जब बिहार की संसदीय राजनीति में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद का अभ्युदय हुआ।

नीतीश कुमार पहली बार विधानसभा का चुनाव जीतकर सदन पहुंचे तो लालू प्रसाद पहली बार विपक्ष के नेता बने। ऐसे तो लालू प्रसाद 8वीं विधानसभा में भी पहुंचे, लेकिन उन्हें बड़ी पहचान इस विस से मिली जब वे विपक्ष के सर्वमान्य नेता बनने की ओर बढ़े। उधर, भाजपा ने जनता पार्टी और वामपंथी दलों को पीछे छोड़ते हुए तीसरी ताकत के रूप में अपनी नयी पहचान बनायी।

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कांग्रेस ने आठवीं विधानसभा की तुलना में अधिक सीटें जीतीं। वर्ष 1980 में उसने जहां 169 सीटें जीती थी, वहीं इस बार उसने 196 सीटें जीतकर निर्विवाद रूप से एकल बढ़त प्राप्त की। बगैर परेशानी के उसने सरकार भी बना ली, लेकिन पार्टी की अंदरूनी कलह से मुक्ति नहीं मिली। पूर्ण बहुमत के बाद भी सरकार दौड़ नहीं पाई। इस दौरान कांग्रेस ने चार सीएम बनाए। पार्टी में गुटबाजी चरम पर पहुंच गयी। हर गुट दूसरे को नीचे करने में जुटा रहा। बार-बार सीएम बदलने से पार्टी की ताकत भी कम होती गयी।

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हाल यह गया कि कांग्रेस ने इस दौड़ में अपना अंतिम मुख्यमंत्री देखा। इसके बाद बिहार में अब तक कांग्रेस का कोई सीएम नहीं बन पाया। पार्टी बीते 35 वर्षों से बिहार में फिर से कुर्सी पर अपने व्यक्ति को देखने का सपना पाले बैठी है। कांग्रेस के पूर्व विधायक और 1985 में पहली बार विधायक बने हरखू झा बताते हैं कि यह चुनाव पूरी तरह राजीव गांधी के नेतृत्व में लड़ा गया। भले ही यह राज्य का चुनाव था, लेकिन इस पर राजीव गांधी की ही छाया थी। इंदिरा गांधी की मौत के बाद पूरे देश में सहानुभूति की लहर थी। इसने कांग्रेस को जबरदस्त लाभ पहुंचाया। झा कहते हैं कि इस चुनाव में कांग्रेस के कई युवा चेहरे विधानसभा पहुंचे, जिन्होंने बाद में कांग्रेस के दिग्गज नेता के रूप में अपनी पहचान बनायी।

सहानुभूति की लहर पर सवार होकर रिकॉर्ड सीटों के साथ कांग्रेस की जीत

पटना। बिहार विस 1985 में व्यापक हिंसा के बीच कांग्रेस ने रिकॉर्ड 196 सीट जीतने में सफल रही। 1980 के चुनाव के बाद दूसरी बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में कांग्रेस को कामयाब रही। दरअसल, ठीक चुनाव के चार माह पूर्व 31 अक्टूबर 1984 की सुबह तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी की उनके अंगरक्षकों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। 31 अक्टूबर की शाम में ही राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने राजीव गांधी को पीएम पद की शपथ दिलाई। इससे पहले 23 जून 1980 को इंदिरा गांधी के छोटे पुत्र संजय गांधी का एक विमान दुर्घटना में निधन हो गया था।

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करीब साढ़े चार साल की अवधि में गांधी-नेहरू परिवार के दो सदस्यों के निधन के बाद देश और कांग्रेस पार्टी की स्थिति यकायक बदल सी गई थी। वहीं, इंदिरा गांधी की हत्या के दो महीनों के अंदर ही लोस चुनावमें सहानुभूति की लहर पर सवार कांग्रेस ने 514 लोस सीटों में 404 सीटें जीतने में सफल रही। वहीं, बिहार सहित दस राज्यों में भी 1985 में चुनाव हुए। बिंदेश्वरी दूबे ने बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।

इन प्रमुख नेताओं को मिली थी जीत

इस चुनाव में जीत हासिल करने वाले प्रमुख नेताओं में जगन्नाथ मिश्र, कर्पूरी ठाकुर, लालू प्रसाद, रघुवंश प्रसाद सिंह, अर्जुन विक्रम शाह, नरसिंह बैठा, हिदयातुल्ला खान, अवध बिहारी चौधरी, उमाशंकर सिंह, प्रभुनाथ सिंह, चंद्रिका राय, तुलसी दास मेहता, नवल किशोर शाही, रघुनाथ झा, विलट पासवान विहंगम, हरखू झा, पदमा चौबे, उमा पांडेय, हेमलता यादव, शकुंतला सिन्हा सहित अन्य नेता प्रमुख थी।

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