बिहार में 12% वोट की लड़ाई में BJP ने उठाए चार बड़े कदम; 2 मामलों में कुशवाहा समाज पर डोरे
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बिहार में जब से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की पार्टी (जेडीयू और राजद) ने सत्ता के लिए गठजोड़ किया है, तब से केंद्र की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (BJP) का शीर्ष नेतृत्व बेचैन है। उसे अगले साल लोकसभा चुनाव की चिंता सता रही है। इसीलिए पार्टी के चाणक्य कहलाने वाले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पिछले छह महीने में चार बार राज्य का दौरा कर चुके हैं।
नए घटनाक्रम में पार्टी ने राज्य का नेतृत्व बदल दिया है। कुशवाहा समाज से आने वाले युवा नेता सम्राट चौधरी को सांसद संजय जायसवाल की जगह बिहार बीजेपी का नया अध्यक्ष बनाया गया है। चौधरी अभी बिहार विधान परिषद के सदस्य हैं। सम्राट चौधरी की ताजपोशी को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लव-कुश वोट बैंक में सेंधमारी के तौर पर देखा जा रहा है।
लव-कुश समीकरण तोड़ने की कवायद:
दो दशक पहले लव-कुश सम्मेलन बुलाने वाले नीतीश कुमार के ईद-गिर्द ही इस समाज का वोट बैंक घूमता रहा है। नीतीश लंबे समय तक इसके बड़े नेता बने रहे हैं लेकिन अब बीजेपी ने उपेंद्र कुशवाहा और सम्राट चौधरी के बहाने लव-कुश समीकरण को तोड़ने की कोशिश की है। राज्य में कुशवाहा समाज का वोट बैंक करीब पांच से छह फीसदी माना जाता है, जबकि लव यानी कुर्मी समुदाय की आबादी 2.5 से तीन फीसदी मानी जाती रही है।
कुशवाहा समाज को इस बात का लंबे समय से मलाल रहा है कि कम हिस्से वाली आबादी के नेता ने उन सबों पर राज किया और उसके हिस्से में राजनीतिक उपेक्षा ही रही। इससे पहले जब पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश की पार्टी से नाता तोड़कर अपनी नई पार्टी बनाई तो उन पर भी डोरे डालने के लिए केंद्र सरकार ने कुशवाहा का सुरक्षा घेरा बढ़ाते हुए वाई प्लस कैटगरी कर दिया।
नीतीश के दो सियासी दुश्मनों पर भी डोरे:
इससे पहले फरवरी में बीजेपी ने नीतीश के दो कट्टर सियासी दुश्मनों विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के नेता और राज्य के पूर्व मंत्री मुकेश सहनी का भी सुरक्षा घेरा बढ़ाकर वाई प्लस कर दिया और जनवरी में लोकजनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान का भी सुरक्षा घेरा अपग्रेड कर जेड कैटगरी में कर दिया। इन चारों नेताओं के समाज का कुल वोट शेयर करीब 12 फीसदी होता है।
बीजेपी की कोशिश बेकार: RJD
बीजेपी की हालिया कोशिशों को राजद ने बेअसर करार दिया है। पूर्व एमएलसी और राजद नेता डॉ. उपेंद्र प्रसाद ने लाइव हिन्दुस्तान से बातचीत में कहा कि कुशवाहा समाज डॉ. लोहिया की समाजवादी विचारधारा का पोषक रहा है और मनुवादी विचारों का विरोधी रहा है। इसलिए सम्राट चौधरी से लेकर उपेंद्र कुशवाहा तक की गई बीजेपी की ताजा कोशिशें समाज पर असर डालने में कारगर नहीं हो सकेंगी।
बीजेपी को 2015 दोहराने का डर
दरअसल, बीजेपी इन कोशिशों के जरिए इन नेताओं से जुड़े जातीय वोट बैंक को अपने पाले में करना चाह रही है क्योंकि उसे 2024 के आम चुनावों में 2015 के चुनाव परिणाम जैसा हश्र होने का अंदेशा है। 2015 के विधानसभा चुनाव में जब नीतीश और लालू ने कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा था तो उसे कुल 41.84 फीसदी वोट मिले थे, जबकि बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए को सिर्फ 34.59 फीसदी वोट मिले थे। पिछले चुनावों का रिकॉर्ड देखें तो (2014 को छोड़कर) जिसकी राज्य में सरकार रही है, लोकसभा चुनावों में उसी का डंका बजा है।