बिहार में सरकारी डाक्टरों और नर्सों की मौज पर लगाम कसने की एक और कोशिश, वेतन और प्रोमोशन पर पड़ेगा फर्क
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बिहार के सरकारी अस्पतालों में तैनात डाक्टर और नर्सों की सेवाओं को अधिक उपयोगी बनाने के लिए नियम बदले गए हैं। बदलाव का मकसद इनकी मनमर्जी पर लगाम कसना है। सरकारी महकमे के डाक्टर और नर्सों के लिए वार्षिक मूल्यांकन के नियम और सख्त कर दिए गए हैं।
जिम्मेदारी की भावना के साथ करना होगा काम
डाक्टर-नर्सों को प्रति वर्ष अपने कार्यों का जो लेखा-जोखा देना होता उसमें स्वास्थ्य विभाग ने कई नए बिंदुओं को शामिल किया है। वार्षिक मूल्यांकन में स्वास्थ्य सेवा के अधिकारियों को जिम्मेदारी की भावना, काम के प्रति उनका रवैया कैसा है इस बारे में भी बताना होगा।
वार्षिक मूल्यांकन में शामिल किए गए नए बिंदु
स्वास्थ्य विभाग के उप सचिव स्तर ने बिहार स्वास्थ्य सेवाएं, स्वास्थ्य शिक्षा सेवा और डेंटल सेवा के पदाधिकारियों और कर्मचारियों को इस संबंध में दिशा निर्देश जारी किए गए हैं। जारी निर्देश में कहा गया है कि पदाधिकारी-कर्मचारी वार्षिक मूल्यांकन में बताएं कि उनमें जिम्मेदारी की भावना का स्तर क्या है?
निर्णय लेने और नेतृत्व क्षमता का होगा मूल्यांकन
जो कार्य उन्हें सौंपे गए हैं उनके प्रति उनका रवैया कैसा है। भावनात्मक स्थिरता, संचार कौशल, निर्णय लेने की क्षमता के साथ नेतृत्व क्षमता के बारे में भी संबंधित अफसरों और कर्मचारियों को जानकारी देनी होगी। संबंधित जानकारी पर मूल्यांकन की समीक्षा वाले पदाधिकारी उन्हें अंक देंगे।
कोविड टेस्ट को भी किया जाएगा मूल्यांकन में शामिल
इसके अलावा संबंधित सेवा के अफसरों को अपनी मूल्यांकन रिपोर्ट में बताना होगा कि अस्पताल में कार्य अवधि के दौरान उन्होंने कोविड के कितने आरटीपीसीआर और एंटीजन टेस्ट किए। कितने मरीजों को एक्सरे, सीटी स्कैन के लिए सुझाव दिए। पुलिस को कितनी दुर्घटना की रिपोर्ट प्रेषित की। डाक्टर और नर्सों को अपना अप्रैजल में यह बताना होगा कि ओपीडी और इमरजेंसी में कितनी सेवाएं दी।
प्रोन्नति और वेतन के निर्धारण में पड़ेगा फर्क
वर्ष भर में किए गए उनके कार्यों के मूल्यांकन के लिए अलग-अलग श्रेणी के अफसरों को मूल्यांकन समीक्षी पदाधिकारी बनाया गया है। वर्ष में डाक्टर, नर्स या डेंटल सेवा के पदाधिकारियों के कार्यों के आधार पर ही उनकी प्रोन्नति और वेतन वृद्धि का निर्धारण हो सकेगा।