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यात्री को भुगतान करें 1.45 लाख रुपये, कोर्ट ने रेलवे पर क्यों ठोका जुर्माना

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हाल ही में दिल्ली की एक कंज्यूमर कोर्ट ने रेलवे को एक यात्री के नुकसान की भरपाई करने के लिए 1.45 लाख रुपये का मुआवजा भुगतान करने का आदेश दिया है। बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली की जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने अजॉय कुमार बनाम स्टेशन मास्टर के विवाद में फैसला सुनाते हुए उत्तर रेलवे को यह मुआवजा देने का आदेश दिया है। मामले में पीड़ित ने शिकायत की थी कि रेलवे की लापरवाही के कारण 2014 में दिल्ली से पटना की ट्रेन यात्रा के दौरान उसका 1.2 लाख रुपये मूल्य का सामान चोरी हो गया था।

अपने फैसले में उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष दिव्य ज्योति जयपुरियार और फोरम के सदस्य अश्विनी कुमार मेहता ने कहा कि रेलवे की खामियों और लचर सेवा की कारण शिकायतकर्ता यात्री को न सिर्फ परेशानी हुई बल्कि आर्थिक नुकसान भी हुआ।

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शिकायतकर्ता ने अपनी याचिका में कहा था कि दिल्ली से पटना तक महानंदा एक्सप्रेस में यात्रा के दौरान रेलवे अधिकारियों की लापरवाही के कारण उसका सामान चोरी हो गया था। यात्री ने दावा किया था कि उसके सामान में कपड़े के साथ-साथ जेवर भी थे। यात्री के मुताबिक उत्तर रेलवे चोरी की गई वस्तुओं के मूल्य की भरपाई करने के लिए बाध्य है। इसके अलावा शिकायतकर्ता ने 50,000 रुपये का मुआवजा भी मांगा था।

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दूसरी ओर, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के स्टेशन मास्टर ने तर्क दिया कि भारतीय रेलवे अधिनियम की धारा 100 के अनुसार रेलवे बिना बुकिंग या अघोषित वस्तुओं की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार नहीं है। स्टेशन मास्टर ने यह भी तर्क दिया कि लगेज चोरी के मामले में स्टेशन मास्टर को पार्टी नहीं बनाया जा सकता है। इसके अलावा यह भी तर्क दिया गया कि यह मामला उपभोक्ता संरक्षण फोरम के क्षेत्राधिकार में नहीं आता है।

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इसके जवाब में आयोग ने कहा कि भारतीय रेलवे और अन्य बनाम उमा अग्रवाल के मामले में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) ने पहले ही स्टेशन मास्टर की दलीलों का समाधान कर दिया है। उपरोक्त केस में NCDRC ने माना था कि यात्रियों और उनके सामान की सुरक्षा सुनिश्चित करने में लापरवाही के लिए रेलवे को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। अधिकार क्षेत्र के मुद्दे पर, एनसीडीआरसी ने फैसला सुनाया था कि चूंकि रेलवे की देश भर में उपस्थिति है, इसलिए बोर्डिंग प्वाइंट पर शिकायत पर विचार किया जा सकता है।

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स्टेशन मास्टर ने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि इस मामले में एफआईआर चोरी के 10 महीने बाद दर्ज की गई थी और उपभोक्ता की शिकायत एफआईआर के दो साल बाद दर्ज की गई थी। उन्होंने कहा कि एफआईआर में एक अनट्रेस रिपोर्ट (यह दर्शाता है कि अपराध के अपराधियों या आरोपियों का पुलिस द्वारा पता नहीं लगाया जा सका) भी दर्ज की गई थी लेकिन उपभोक्ता फोरम ने स्टेशन मास्टर की एक भी दलील मानने से इनकार कर दिया और 1.20 लाख के सामान का मूल्य और उस पर 9 फीसदी की दर से ब्याज के भुगतान करने का आदेश दिया। फोरम ने यात्री को मानसिक प्रताड़ना और परेशानी झेलने के एवज में भी 25000 रुपये का मुआवजा देने का आदेश रेलवे को दिया।

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