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जदयू ने उपेंद्र कुशवाहा को बताया अति महत्वाकांक्षी, ललन सिंह बोले- अब जहां भी गये हैं वहां स्थिर से रहें

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जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने कहा है कि उपेंद्र कुशवाहा के व्यक्तित्व में सबसे बड़ी खामी उनकी अति महत्वाकांक्षा है, जिसके कारण वो कहीं अधिक दिनों तक टिक नहीं पाते हैं. हम उनको शुभकामना देते हैं, लेकिन अब वो जहां भी गये हैं, वहां स्थिर हो कर रहें. उपेंद्र कुशवाहा के जदयू छोड़ने के बाद पार्टी कार्यालय में पत्रकारों से बात करते हुए ललन सिंह ने कहा कि पिछले दो दिनों से सुन रहे थे कि वो कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर रहे हैं.

उनकी बैठक में जदयू का कोई कार्यकर्ता शामिल नहीं था. उनके साथ एक कुनवा चलता है, वही पहले भी था और आज भी उनके साथ है, लेकिन उनके कुनवे में शामिल लोग भी अब उपेंद्र कुशवाहा के निजी महत्वाकांक्षा से परिचित हो चुके हैं. आज उस कुनवे से निकल कर नीरज कुशवाहा हमारे साथ हैं, कई और आनेवाले हैं.

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जदयू को मजबूत करने का उनका दावा खोखला था

ललन सिंह ने कहा कि उपेंद्र कुशवाहा का जाना तय था. वो कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना साध रहे थे. हमसब को पता था कि वो पटना दिल्ली की यात्रा क्यों कर रहे हैं. पिछले दिसंबर से ही वो इस प्रयास में लगे थे. जदयू को मजबूत करने का उनका दावा खोखला था. दरअसल उनको जहां जाना था, वहीं गये हैं. जदयू को मजबूत करने के लिए उन्होंने कोई काम किया हो तो बतायें. सदस्यता अभियान के समय तो वो पार्टी में ही थे कितने सदस्य बनाये. ललन सिंह ने कहा कि जदयू न तो कमजोर हुई है ना जदयू पर कोई संकट है. ललन सिंह ने साफ शब्दों में कहा कि जदयू का किसी पार्टी के साथ कोई विलय नहीं होने जा रहा है.

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नीतीश कुमार ने उन्हें विरोधी दल का नेता बनाया था

तेजस्वी के उत्तराधिकारी बनाये जाने पर ललन सिंह ने कहा कि वो उपमुख्यमंत्री हैं तो उत्तराधिकारी तो हैं ही. 2025 में सीएम उम्मीदवार को लेकर पूछे गये सवाल पर ललन सिंह ने कहा कि 2025 की बात 2025 में होगी. राजद से समझौते के सवाल पर ललन सिंह ने कहा कि उपेंद्र कुशवाहा अरवल में तेजस्वी से मिलने किस बात को लेकर गये थे. तेजस्वी यादव से वो समझौता करने गये थे तो वो सही था. कर्पूरी ठाकुर की कौन सी विरासत उन्होंने बचाने का काम किया है.

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उनको पार्टी में लाने का फैसला अकेले नीतीश कुमार का था

पार्टी की ओर से झुनझुना और लॉलीपॉप देने के सवाल पर ललन सिंह ने कहा कि जब वो पहली बार विधायक बने थे तो उपनेता होते हुए नीतीश कुमार ने उन्हें विरोधी दल का नेता बनाया था, लेकिन वो पार्टी छोड़ कर चले गये. दूसरी बार आये तो राज्यसभा जाने की इच्छा जतायी, नीतीश कुमार ने इन्हें राज्यसभा भेजा. तीन माह बाद ही ये इधर-उधर करने लगे. इस बार कौन चाहता था कि ये आयें, केवल नीतीश कुमार के चाहने से ये पार्टी में लौटे थे. कोई पार्टी नेता तैयार नहीं था, यहां तक कि तत्कालीन अध्यक्ष तक उनके स्वागत समारोह में शामिल नहीं हुए.

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