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कुशवाहा का सबसे बड़ा हमला: JDU नीतीश की पार्टी नहीं.. शरद यादव को भगाकर कब्जा जमा लिया

बिहार की जनता दल युनाइटेड में घमासान थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। उपेंद्र कुशवाहा ने रिपब्लिक भारत से बातचीत करते हुए सीएम नीतीश कुमार पर जमकर हमला बोला है। कुशवाहा ने कहा कि जनता दल युनाइटेड नीतीश कुमार की पार्टी नहीं है। ये शरद यादव की पार्टी थी जिन्हें नीतीश कुमार ने धक्का देकर पार्टी से निकाल दिया। नीतीश कुमार को कोई अधिकार नहीं कि वो मुझे पार्टी से बाहर जाने के लिए कहें।

उन्होंने कहा कि मैं तो पहले से ही कह रहा हूं कि जेडीयू ने मुझे झुनझुना थमा दिया है और अब ये साबित हो चुका है जब जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह ने ये कहा दिया कि मैं अब जेडीयू की पार्लियामेंट्री बोर्ड का सदस्य नहीं रहा, जबकि उनके अध्यक्ष बनने के बाद मेरे नाम से पत्र आया है जिसमें साफ तौर पर लिखा है की उपेंद्र कुशवाहा अध्यक्ष पार्लियामेंट्री बोर्ड।

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उपेंद्र कुशवाहा नहीं हैं JDU Parliamentary Board के अध्यक्षः ललन सिंह

गौरतलब हो कि इसके पहले ललन सिंह ने उपेंद्र कुशवाहा को लेकर कहा था कि अब वो संसदीय बोर्ड के सदस्य नहीं हैं। ललन सिंह ने सोमवार (6 फरवरी) को कहा था, ‘कुशवाहा, अब केवल जदयू के एमएलसी (JDU MLC) हैं। हालांकि पूर्व केंद्रीय मंत्री अगर पार्टी में रहेंगे, मन से रहेंगे तो पार्टी के शीर्ष पद पर फिर से आसीन हो सकते हैं।’

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अगले सप्ताह दो दिवसीय सम्मेलन में कुशवाहा पर होगी चर्चाः ललन सिंह

कुशवाहा ने ये भी कहा था कि जेडीयू के शीर्ष नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पार्टी में कुशवाहा का स्वागत करते हुए उन्हें जदयू संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनाए जाने की घोषणा की थी। ललन का यह बयान कुशवाहा द्वारा पार्टी कैडर को लिखे गए एक खुले पत्र के ठीक बाद आया है जिसमें उन्होंने अगले सप्ताह दो दिवसीय एक सम्मेलन में भाग लेने का आग्रह किया है जिस दौरान जदयू (JDU) को कमजोर करने के लिए जिम्मेदार कारकों, जिसमें राजद के साथ एक अफवाह भरा ‘एक खास डील’ भी शामिल है, पर चर्चा की जाएगी।

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पार्टी का पद देकर लॉलीपॉप की तरह इस्तेमाल कियाः कुशवाहा

ललन ने कुशवाहा के इस आरोप को भी खारिज कर दिया कि पार्टी का पद एक लॉलीपॉप की तरह था और चुनावों में उम्मीदवारों का फैसला करते समय उनसे सलाह नहीं ली गई थी। यह पूछे जाने पर कि क्या दुराग्रह से कुशवाहा को विधान परिषद का पद गंवाना पड़ सकता है, जदयू प्रमुख ने कहा, ‘यह कहना मेरे बस की बात नहीं है। किसी सदस्य को अयोग्य ठहराना सदन के सभापति का विशेषाधिकार होता है।’

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