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बिहार में बिछड़े साथियों को जोड़ने की पहल, इधर नीतीश से मिले पीके, उधर चिराग व शाह की मुलाकात

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देश की राजनीति में बिहार प्राय: अपनी महत्वपूर्ण भूमिका दर्ज करता रहा है। कहिए तो राजनीति की दशा-दिशा तय करता रहा है। चार दशक बाद फिर बिहार इतिहास दोहराने की ओर बढ़ रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के गठबंधन बदलने के बाद प्रदेश की राजनीति में प्रयोग-उपयोग का दौर तेजी से परवान चढ़ने लगा है।

सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ओर से 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव (Lok Shabha Election, 2024) की तैयारियों को लेकर बिछड़े साथियों को जोड़ने की पहल तेज हो गई है। वर्तमान राजनीतिक परिदृध्य पर गौर करें तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) के ​खिलाफ 1977 की तरह संपूर्ण विपक्ष को एकजुट करने की जुगत में जयप्रकाश नारायण (Jai Prakash narayan) के अनुयायियों के बीच गोलबंदी तेज गई है।

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इसी क्रम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहले पवन वर्मा (Pawan Verma) और फिर प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) से मुलाकात को देखा जा रहा है। लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास (RLJP) के नेता चिराग पासवान (Chirag Paswan) ने भी सूरत में एक कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) से मुलाकात की है।

2015 के चुनाव में जलावा दिखा चुके पीके :

महागठबंधन में रहते हुए नीतीश कुमार के लिए प्रशांत किशोर 2015 के विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election, 2015) में रणनीतिक जलवा दिखा चुके हैं। नए समीकरण में इसी उम्मीद से दोनों की मुलाकात को देखा जा रहा है। इससे पहले नीतीश दिल्ली की यात्रा के जरिए संपूर्ण विपक्ष को जोड़ने की पहल कर चुके हैं। पहल को अमलीजामा पहनाने में प्रशांत किशोर की बड़ी भूमिका हो सकती है।

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अमित शाह की शरण में चिराग पासवान :

लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान बुधवार को हिंदी दिवस समारोह में शामिल होने के लिए सूरत में थे। इस कार्यक्रम के मुख्य अति​थि पूर्व भारतीय जनता पार्टी (BJP) अध्यक्ष व केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह थे। चिराग भी ‘राजभाषा’ पर संसदीय समिति के सदस्य हैं और वे समिति के सदस्य के रूप में वहां थे। बताया जाता है कि बीजेपी की पहल पर ही चिराग सूरत गए थे।

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दलित मतदाताओं को सहेजने की मुहिम :

बीजेपी निश्चित रूप से जानती है कि पशुपति पारस के नेतृत्व वाला एलजेपी का टूटा हुआ गुट भले ही गठबंधन में है, लेकिन बिहार में मतदाता अभी भी चिराग पासवान के साथ हैं। बिहार में छह प्रतिशत पासवान मतदाता हैं जिन्होंने बीते चुनाव में बड़े पैमाने पर एलजेपी को अपना समर्थन दिया था। इसी लिहाज से 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले जनता दल यूनाइटेड, राष्‍ष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस और वाम दलों के महागठबंधन के साथ मुकाबला करने के लिए बीजेपी दलित मतदाताओं के खास हिस्से को अपने पास रखना चाहती है।

चाचा-भतीजा को साथ लाने की कोशिश :

बीजेपी राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के भीतर चिराग पासवान और पारस, दोनों को ही साथ बनाए रखने का भी फार्मूला ढूंढ रही है। चिराग पासवान फिलहाल ऐसी किसी भी संभावना पर चुप्पी साधे हुए हैं। संकेत है कि बीजेपी चाचा-भतीजा (चिराग और पारस) को एक साथ लाने के जतन में जुट गई है। इससे एलजेपी के आधार वोट बैंक की गारंटी बढ़ेगी।

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मुकेश सहनी पर भी बीजेपी की नजर :

बीजेपी बिहार में महागठबंधन के बैनर तले जुटे सात दलों के जवाब देने की तैयारी कर रही है। आधार मतदाता अति पिछड़ा समाज के वोट बैंक में बिखराव को रोकने लिए विकासशील इंसान पार्टी (VIP) प्रमुख मुकेश सहनी (Mukesh Sahani) को साधने की पहल भी महाराष्ट्र की राजनीति के जरिए कर सकती है। महाराष्ट्र की सत्ता में ​बीजेपी की वापसी के साथ मुकेश सहनी के मुंबई कनेक्शन को आधार बनाया जा रहा है। बिहार के नए प्रभारी विनोद तावड़े भी महाराष्ट्र के रहने वाले हैं।

मुकेश सहनी का महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से भी बढ़िया संबंध है। इस लिहाज से बीजेपी को यह समीकरण साधने में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले बतौर बीजेपी चुनाव प्रभारी देवेंद्र फडणवीस महागठबंधन से मुकेश सहनी को तोड़कर बीजेपी से जोड़ने में सफल रहे थे। इसके जरिए बड़ा संदेश भी दिया था।

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