मिथिलांचल में भाई-बहन के अटूट प्रेम का पर्व है सामा-चकेवा, जानें सबकुछ…
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समस्तीपुर :- छठ पर्व संपन्न होने के साथ ही भाई-बहनों के पवित्र प्रेम का लोक पर्व सामा चकेवा शुरू हो गया। इसके लिए समस्तीपुर जिले के विभिन्न चौक-चौराहों पर मूर्तिकारों के पास बहनें सोमवार से सामा चकेवा की मूर्तियां की खरीदारी में जुट गई। सामा-चकेवा मिथिला का प्रसिद्ध लोक पर्व है। यह पर्व प्रकृति प्रेम, पर्यावरण संरक्षण, पक्षियों के प्रति प्रेम व भाई-बहन के परस्पर स्नेह संबंधों का प्रतीक है। भाई-बहन का यह त्योहार सात दिनों तक चलता है।
यह कार्तिक शुक्ल द्वितीया से प्रारंभ और पूर्णिमा की रात तक चलता है। कार्तिक शुक्ल सप्तमी से कार्तिक पूर्णिमा की शाम ढलते ही महिलाएं सामा का विसर्जन करती हैं। इस पर्व को भाई-बहन के प्यार के तौर पर मनाया जाता है। इसको लेकर मूर्तिकारों के द्वारा सामा-चकेवा के साथ सतभैया, चुगला जैसे जुड़ी तमाम मूर्तियों का निर्माण कराया जाता है।
सामा-चकेवा पर्व का संबंध पर्यावरण से भी माना जाता है। पारंपरिक लोकगीतों से जुड़ा सामा-चकेवा मिथिला संस्कृति की वह खासियत है, जो सभी समुदायों के बीच व्याप्त जड़ बाधाओं को तोड़ता है। आठ दिनों तक यह उत्सव मनाया जाता है और नौवें दिन बहनें अपने भाइयों को धान की नयी फसल का चूड़ा एवं दही खिला कर सामा-चकेवा की मूर्तियों को तालाब में विसर्जित कर देते हैं।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, भगवान कृष्ण की पुत्री श्यामा और पुत्र शाम्भ के बीच अपार स्नेह था। कृष्ण की पुत्री श्यामा ऋषि कुमार चारूदत्त से ब्याही गयी थी। श्यामा ऋषि मुनियों की सेवा करने बराबर उनके आश्रमों में जाया करती थी। भगवान कृष्ण के मंत्री चुरक को रास नहीं आया और उसने श्यामा के विरूद्ध राजा से शिकायत करना शुरू कर दिया। क्रुद्ध होकर भगवान श्रीकृष्ण ने श्यामा को पक्षी बन जाने का श्राप दे दिया। श्यामा का पति चारूदत्त भी शिव की पूजा-अर्चना कर उन्हें प्रसन्न कर स्वयं भी पक्षी का रूप प्राप्त कर लिया।
श्यामा के भाई एवं भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्भ ने अपने बहन-बहनोई की इस दशा से दुखी होकर अपने पिता की आराधना शुरू कर दी। इससे प्रसन्न होकर श्राप से मुक्ति के उपाय बताया। शरद महीने में सामा-चकेवा पक्षी की जोड़ियां मिथिला में प्रवास करने पहुंच गयी थीं। भाई साम्भ भी उसे खोजते मिथिला पहुंचे और वहां की महिलाओं से अपने बहन-बहनोई को श्राप से मुक्त करने के लिए सामा-चकेवा का खेल खेलने का आग्रह किया और कहते हैं कि उसी द्वापर युग से आजतक इसका आयोजन हो रहा है।
जानें क्या सब बनता है :
स्थानीय लोग बताते हैं कि सामा-चकेवा पूरे मिथिला में भाई बहन के प्रेम और सौहार्द का प्रतीक पर्व माना जाता है। इस पर्व में सामा-चकेवा के अलावा कई सारे और भी मूर्तियां बनती हैं, जिसका अपना एक अलग महत्व होता है। उन्होंने बताया कि सामा-चकेवा के अलावा वृंदावन, चुगला, सतभइया, ढका, खटिया, पौउती जैसे मिट्टी की सामग्री बनती है और बहना इसके साथ पूजा करती है।
जानें पर्व की क्या है महानता :
इस पर्व को मिथिला में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व को बहन अपने भाई की दीर्घायु होने की कामना के लिए करती है। इसमें बहन-भाई के बीच प्यार का रिस्ता मजबूत होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में अगर देखेंगे तो प्रत्येक घर में इस पर्व को मनाया जाता है। हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार संध्याकाल में अपने-अपने घरों से सामा-चकेवा के साथ जुड़ी अन्य मूर्तियों को लेकर एक जगह पूरे गांव की लड़कियां इकट्ठा होती हैं और वहां इसकी गीत गाते हैं। यह छठ के तुरंत बाद प्रारंभ होता है और कार्तिक पूर्णिमा के दिन इसका समापन होता है।