महंगाई के बीच अपने पुरुखों की कला को जीवंत रखने की कोशिश में जुटे हैं कुम्भकार, लागत के अनुरूप नहीं मिल रही कीमत
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समस्तीपुर :- मिट्टी निर्माण से जुड़े कुम्भकार अब बदलते परिवेश में अपने पुस्तैनी धंधे से विमुख होने लगे हैं। हालांकि कुछ बुजुर्ग व कुछ युवा कुम्भकार अपने पुस्तैनी धंधे को परिवार के साथ महंगाई के बीच किसी तरह जीवन यापन के लिए अब भी चला रहे हैं। समय व महंगाई के बीच धंधे में मुनाफा नहीं देख युवा वर्ग के अधिकतर कुम्भकार अब परदेश की ओर रुख करने पर मजबूर हैं, या फिर गांव में अन्य मजदूरी कर दो वक्त की रोटी जुटाने में लगे हैं।
पुराने लोग अब भी अपनी पुस्तैनी धंधे को किसी तरह निभा रहे हैं। मिट्टी के कलाकार कुम्भकार को समुचित संरक्षण नहीं मिलने व लागत सामग्रियों में लगातार बेतहाशा वृद्धि से कुंभकारों में पुरखों की धंधे से अब ज्यादा लगाव नहीं दिख रहा है। यहां सौ से अधिक मूर्ति का निर्माण कुम्भकार करते थे, वह अब सिमट कर 30 से 50 मूर्ति निर्माण पर रुक गया है। सरस्वती पूजा के अवसर पर मूर्ति निर्माण की बात हो या फिर दीपावली, छठ पर्व की बात हो। पहले के अपेक्षा मिट्टी के मूर्ति व वर्तन निर्माण में काफी कमी आई है।
बहुत कम कुम्भकार ही परिस्थितियों व महंगाई का सामना करते हुए पुरुखों की कला को जीवंत रखने की कोशिश में जुटे हैं। कुम्भकारो ने बताया कि अब पहले वाला कमाई नहीं रह गई है। महंगाई दिनों-दिन आसमान छूने लगी है। मूर्ति निर्माण में लागत पूंजी भी बड़ी मुश्किल से ऊपर हो पाती है। अधिकतर लोग तो अब परदेश में रोजी रोटी की तलाश में भटक रहे हैं।
पहले एक हजार कीमत की एक मूर्ति पर 4 सौ रुपए तक रुपए बच भी जाते थे। अब लागत पूंजी किसी तरह ऊपर हो पाती है। मजबूरी है कि पुरखों की मान सम्मान के लिए इस धंधे में जुटे हैं। बचत कम होने के बाद भी पुरुखों की धंधे को किसी तरह निभा रहे हैं। कई लोग तो पुरखों की धंधे को छोड़ दूसरे धंधे में जुटे हैं। अब कारीगर रखकर काम करना पड़ता है। इससे बचत कम होती है। इस बार 60 मूर्ति एक हजार रुपए से लेकर 7 हजार रुपए कीमत तक की मूर्ति केवल आर्डर पर बनाई गई है।
सरस्वती पूजा को लेकर प्रतिमा को अंतिम रूप देने में जुटे हैं कलाकार :
आगामी 26 जनवरी को वसंत पंचमी के अवसर पर होने वाली सरस्वती पूजा को लेकर कुम्भकार मूर्ति को अंतिम रुप देने में जुटे हैं। कड़ी धूप नहीं होने के कारण मूर्ति पूरी तरह सूख भी नहीं पाती है। करीब 45 दिनों से पूरा परिवार मूर्ति बनाने में जुटे हैं। अगर सभी मूर्ति नहीं बिकी तो मजदूरी के अनुरुप भी घाटा सहना पड़ता है। कुम्भकार बताते हैं कि मिट्टी तीन हजार रुपए टेलर है। पहले 4 से 5 सौ रुपए टेलर था।
पुआल 200 रुपए से 250 रुपए सैकड़ा है। कांटी एक सौ रुपये किलो, बांस 200 रुपए प्रति एक पीस, रंग एक मूर्ति पर करीब 250 से 300 रुपए की खर्च आती है। कपड़ा करीब 300 रुपए से 500 रुपए का हो जाता है। करीब 5 सौ से 1000 रुपए एक मूर्ति की सजावट में आ जाती है। अगर एक हजार की मूर्ति है तो करीब लागत खर्च 800 रुपए की हो जाती है। दिनों-दिन बढ़ती महंगाई के कारण अब आमदनी की बात नहीं हो रही है। फिर भी रोजी रोटी के लिए भीषण ठंड में भी काम करना पड़ता है।