आखिर मुकेश सहनी को अभी तक क्यों नहीं आया एनडीए का बुलाया? क्या है बीजेपी की रणनीति?
व्हाट्सएप पर हमसे जुड़े
लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारी को लेकर सभी राजनीतिक दलों ने कमर कस ली है। बिहार की राजधानी पटना में 23 जून को होने के बाद विपक्षी एकता की दूसरी बैठक 17 और 18 जुलाई को बेंगलूरु में होगी। वहीं दिल्ली में एनडीए की 18 जुलाई को अहम बैठक बुलाई गई है, जिसमें शामिल होने के लिए सहयोगी दलों को न्योता भेजा जाने लगा है। बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने लोजपा सांसद चिराग पासवान को लिखे पत्र के बाद उनकी एनडीए में वापसी हो गई है।
साथ ही हाल में एनडीए में आए बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी भी एनडीए की बैठक के हिस्सा होंगे। इस बीच सूत्रों से मिल रही जानकारी के अनुसार उपेंद्र कुशवाहा को भी एनडीए की ओर से बुलावा आ चुका है। अब सवाल यह उठता है कि वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी का क्या होगा? एनडीए की मीटिंग 18 जुलाई को है और देखना यह है कि मुकेश सहनी को आने पाले दो दिनों में बुलावा आता है या नहीं।
सन ऑफ मल्लाह के नाम से विख्यात मुकेश सहनी ने एक समय में बीजेपी के लिए 2014 में चुनाव प्रचार किया था। हालांकि तब तब सहनी ने अपनी कोई पार्टी नहीं बनाई थी। 2014 लोकसभा चुनाव बीजेपी ने जीता। निषाध समाज को अनुसूचित जाति श्रेणी में शामिल करने का वादा पूरा नहीं होने पर मुकेश सहनी ने बीजेपी से किनारा कर लिया। मुकेश सहनी ने 2018 में विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के नाम से पार्टी भी बनाई।
सहनी की वीआईपी ने 2019 के आम चुनाव में महागठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। इस चुनाव में वीआईपी को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली। इस चुनाव के बाद सहनी और महागठबंधन के बीच दूरियां बढ़ गई। आपको बता दें कि तेजस्वी यादव के प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान मुकेश सहनी नाराज होकर बाहर चले गए थे। सहनी ने तो यहां तक कह दिया था कि तेजस्वी ने उनके पीठ में छूरा भोंकने का काम किया था। फिर 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए के साथ गठबंधन कर मुकेश सहनी की पार्टी ने चार सीटें जीतकर राज्य में अपनी जगह बनाई और मंत्री भी बनें।
इस बीच 2022 में आरजेडी विधायक अनिल सहनी को दिल्ली की एक अदालत ने एलटीसी घोटाले में सजा सुनाई, जिसके बाद उनकी विधायकी खत्म हो गई। कुढ़नी में उपचुनाव हुआ तो वहीं मुकेश सहनी ने भी अपनी पार्टी से उम्मीदवार मैदान में उतार दिया। हालांकि बीजेपी के केदार गुप्ता ने बड़ी जीत हासिल की। फिर मुकेश सहनी यूपी का रुख पकड़ लिया और वहां चले गए चुनाव लड़ने। यूपी में वीआईपी का खाता भी नहीं खुला। इस बीच सहनी की पार्टी के तीन विधायक बीजेपी में शामिल हो गएं। मुकेश सहनी को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया गया। कुल मिलाकर कहा जा सकता कि बीजेपी के साथ सहनी का संबंध बहुत अच्छा नहीं रहा।
बताया जाता है कि मुकेश चिराग खुद को चिराग पासवान के कद का नेता मानते हैं। मतलब साफ है कि जिस तरह से चिराग पासवान ने आगामी लोकसभा चुनाव में 6 सीटों की मांग की है तो यदि एनडीए में वीआईपी शामिल हो भी जाती है तो मुकेश सहनी भी छह सीटों की डिमांड रख सकते हैं। यह तो तय है कि बीजेपी की 40 लोकसभा सीटों में से बीजेपी खुद 30 सीटों पर लड़ेगी। 10 सीटों पर एनडीए में शामिल घटक दलों को बैलेंस बनाते हुए देने की रणनीति होगी। अभी तक मुकेश सहनी को एनडीए की ओर से बुलाया नहीं आने का एक कारण यही भी माना जा रहा है कि बीजेपी दबाव की राजनीति करने में जुटी हुई हो। अब यह तो आने वाले 2 दिनों में पता चल ही जाएगा कि सन ऑफ मल्लाह को एनडीए की ओर से बुलाया आता है या नहीं।