बिहार में फेल हो रहा है गठबंधन का फॉर्मूला? जानें नीतीश कुमार के लिए कुढ़नी की हार के मायने

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2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मिली हार के बाद भगवा पार्टी के दिवंगत नेता अरुण जेटली ने कहा था कि बिहार में तीन ताकतवर दल हैं। जो दो दल साथ रहेगा, हमेशा जीत उसी धड़े की होगी। नीतीश कुमार ने अगस्त में एनडीए से खुद को अलग करते हुए महागठबंधन में वापसी की और बिहार में नई सरकार बनाई। इसके बाद कहा जाने लगा कि बिहार में अब बीजेपी की राह बहुत कठिन हो जाएगी। हालांकि, इसके बाद यहां तीन उपचुनाव हुए हैं और दो सीटों पर आरजेडी-जेडीयू गठबंधन को हार का सामना करना पड़ा है।

महागठबंन और खासकर नीतीश कुमार के लिए ये हार इसलिए मायने रखते हैं कि इन उपचुनावों में खुद नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव चुनाव प्रचार के लिए उतरे थे। गोपालगंज सीट पर आरजेडी उपचुनाव लड़ रही थी। यहां तेजस्वी यादव ने रैली को संबोधित किया। वहीं, कुढ़नी में तो दोनों नेताओं की पहली बार संयुक्त रैली हुई। वहीं, बीजेपी की बात करें तो एक-दो स्टार कैंपेनर को छोड़ दें तो स्थानीय नेताओं ने ही यहां प्रचार किया। केंद्रीय स्तर के नेताओं को दूर रखा गया।

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कुढ़नी के नतीजों के महत्व को जानने के लिए थोड़ा और पीछे चलते हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार जब एनडीए में थे, तब राजद ने अकेले दम पर कुढ़नी में भाजपा को हराया था। राजद विधायक अनिल सहनी को एलटीसी घोटाले में दोषी करार दिए जाने से सदस्यता चली गई। उपचुनाव में यह सीट जदयू को मिली। भाजपा के केदार गुप्ता ने इस चुनाव में जदयू के मनोज कुशवाहा को पराजित कर दिया है। आपको बता दें कि बिहार में महागठबंधन में सात दल शामिल है।

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जेडीयू के लिए लगातार खराब हो रहे ट्रेंड

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद हुए विधानसभा आम चुनाव और उप चुनावों के ट्रेंड जदयू के लिए अच्छे नहीं रहे हैं। राजद और भाजपा का प्रदर्शन तुलनात्मक रूप से बेहतर रहा है। नवंबर में हुए दो सीटों के उपचुनावों में एक भाजपा (गोपालगंज) और एक राजद (मोकामा) के खाते में गई थी। राजद और भाजपा अपनी- अपनी सीटें बचाने में कामयाब रही। वहीं, उसके तुरंत बाद हुए कुढ़नी उपचुनाव में जदयू को हार का मुंह देखना पड़ा है। गौरतलब है कि यहां महागठबंधन अपने सात दलों के साथ एकजुट होकर यह उपचुनाव लड़ रहा था, तब भी उसे इस स्थिति का सामना करना पड़ा है।

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भाजपा को हराने की मुकेश सहनी मंशा पर भी फिरा पानी

कुढ़नी विधानसभा सीट के उपचुनाव में वीआईपी की भाजपा को हराने की मंशा पर पानी फिर गया। कुढ़नी उपचुनाव में भाजपा जीत हासिल करने में सफल रही, जबकि वीआईपी उम्मीदवार यहां तीसरे नंबर पर रहे। वीआईपी के उम्मीदवार निलाभ कुमार को कुल दस हजार वोट मिले, जबकि भाजपा प्रत्याशी केदार गुप्ता को 76 हजार 722 और जदयू प्रत्याशी मनोज कुमार सिंह को को 73 हजार 73 वोट हासिल हुए।

उपचुनाव में वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी ने धुंआधार प्रचार किया। वह अपनी चुनावी सभाओं में भी अपने उम्मीदवार को जिताने के साथ ही यह बात भी बार-बार कह रहे थे कि भाजपा को सबक सिखाना है। लेकिन, नतीजों से साफ है कि वीआईपी को अपने समर्थक समाज का भी पूरा वोट नहीं मिल पाया। इतना ही नहीं, सहनी समाज के दो अन्य उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में थे, इनमें निर्दलीय प्रत्याशी शेखर सहनी को 3716 वोट और जन संभावना पार्टी के उपेंद्र सहनी को 1090 वोट ही हासिल हो सका। माना जा रहा है कि भूमिहार समाज से आने वाले वीआईपी उम्मीदवार को अपने समाज का वोट भी अपेक्षा के अनुरूप नहीं मिला।

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अपने भी देने लगे नसीहत

उपचुनाव के नतीजे सामने आने के बाद नीतीश कुमार के अपने ही नसीहत देने लगे हैं। जी हां, हम उपेंद्र कुशवाहा की बात कर रहे हैं। उन्होंने कहा है कि कुढ़नी के परिणाम से हमें बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। पहली सीख, जनता हमारे हिसाब से नहीं बल्कि हमें जनता के हिसाब से चलना पड़ेगा। कुशवाहा के बयान के कई मायने निकाले जा सकते हैं। हालांकि, ताजा नतीजों से एक बात तो साफ है कि बिहार की राजनीति अब 1+1=2 वाली नहीं रह गई है। लंबे समय से बिहार की गद्दी पर काबिज नीतीश कुमार और उनकी पार्टी की लोकप्रियता कम होती दिख रही है।

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