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दरभंगा राज: प्राइवेट प्लेन, महल के पास रेलवे स्टेशन, खजाना ऐसा कि दान कर दिया था कई क्विंटल सोना…

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दरभंगा राज एकबार फिर चर्चा में है. पिछले मंगलवार को महाराज कामेश्वर सिंह के भाई के पोते कपिलेश्वर सिंह ने मंदिरों को दान किए गए बेशकीमती जेवरात जो अलग-अलग बैंकों के लॉकर में रखे हुए उनके गायब होने का मुकदमा दर्ज कराया है. पुलिस गायब गहनों की कीमत करोड़ों रुपए बता रही है जबकि कपिलेश्वर सिंह ने गहनों की कीमत अरबों रुपए बताई है. ये गहने देश के 108 मंदिर जिन्हे दरभंगा महाराज ने ही बनवाया था उन्हें दान में दिए गए थे.

बिहार के मिथिला का दिल कहे जाने वाला दरभंगा का गौरवशाली इतिहास प्रसिद्ध दरभंगा राज के चर्चा के बिना अधुरा है. दरभंगा राज जिसके राजा, खासकर महाराजा कामेश्वर सिंह दानशीलता के लिए मशहूर हैं.

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दरभंगा राज परिवार के वारिस कपिलेश्वर सिंह
BHU के निर्माण के लिए 50 लाख रुपए का दान

कामेश्वर सिंह ने उस जमाने में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए 50 लाख रुपए दिए थे. पटना विश्वविद्यालय, कलकत्ता विश्वविद्यालय, प्रयाग विश्वविद्यालय और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के निर्माण में भी दरभंगा महाराज ने दिल खोल कर दान दिया था. अपनी हरकतों से सुर्खियों में रहने वाला ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय (LNMU) और संस्कृत विश्वविद्यालय दरभंगा राज के भवनों में ही चल रहा है.

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मंदिरों में दान में दिए जेवरात गायब होने के बाद एकबार फिर दरभंगा महाराज और दरभंगा राज चर्चा में है. अरबों रुपए के गहने गायब होने के दावे के बीच हम आपको दरभंगा राज और दरभंगा महाराज के बारे में बता रहे हैं.

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दरभंगा राज के नरगौना पैलेस का ऐतिहासिक टर्मिनल यहीं था
महल के पास तक जाती थी रेल

तब दरभंगा राज का वैभव पूरे देश में प्रसिद्ध था. इस राज परिवार के पास अपना प्राइवेट प्लेन था. किले के अंदर अपनी हवाई पट्टी. दरभंगा महाराज के आवास के पास तक रेल लाइन बिछी थी. महाराज के स्पेशल ट्रेन और महल सरीखे सैलून की भी चर्चा होती थी. कहा जाता है कि बिहार में जो सबसे पहली ट्रेन समस्तीपुर से चली थी, उसका अंतिम स्टेशन महाराजा कामेश्वर सिंह के महल नरगोना पैलेस के पास था. नरगोना पैलेस के ठीक बगल में स्थित वह स्टेशन आज भी इसका गवाही दे रहा है. हालाकि अब इस स्टेशन की हालत जर्जर हो चुकी है. इतना ही नहीं ये भी कहा जाता है कि बिहार में 1874 में रेल पटरी दरभंगा महाराज की पहल और दान से ही बिछी थी.

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लाल किले की तर्ज पर दरभंगा का किला

दरभंगा के प्रसिद्ध किले को लाल किले की तर्ज पर बनवाया गया था. 85 एकड़ जमीन पर आलीशान किले का निर्माण कराया गया था. किले की दीवारें 90 फीट ऊंची थी. यह लाल किले की दीवार से भी उंची है. 1934 में भूकंप के बाद जब किले का मरम्मत कराया गया तब सालों तक काम चला था. दरभंगा महाराज कामेश्वर सिंह की शानो-ओ-शौकत ऐसी थी की उनके महल में आयोजित कार्यक्रम में ब्रिटिश वायसराय भी शामिल होते थे. अंग्रेजों ने उन्हें महाराजाधिराज की उपाधि दी थी.

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दरभंगा परिवार से जुड़े थे उस्ताद बिस्मिल्लाह खान

दरभंगा राज परिवार कला-संस्कृति का भी प्रेमी था. इस राज परिवार ने कलाकारों को खूब बढ़ाया. भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान जी, प्रसिद्ध गायिका गौहर जान, ध्रुपद घराने के पंडित राम चतुर मालिक आदि राज दरभंगा से जुड़े थे. प्रसिद्ध लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने भी एक फेसबुक पोस्ट में इसका जिक्र किया है.

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’62 के युद्ध के समय क्विंटल में किया था सोना दान’

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार और दरभंगा राज परिवार के इतिहास को जानने वाले अमरनाथ चौधरी ने बताया. दरभंगा राज के अंतिम राजा कामेश्वर सिंह जहां अपनी शान शौकत के लिए जाने जाते थे वहीं उन्होंने दिल खोल कर दान भी किया. BHU की स्थापना के लिए उन्होंने तब 50 लाख रुपए दान दिए थे. इसके साथ ही पटना विश्वविद्यालय समेत देश के कई विश्वविद्यालयों की स्थापना में भी सहयोग किया था. दरभंगा का डीएमसीएम उनके दान दिए जमीन पर ही बना है. इतना ही नहीं 62 में भारत-चीन युद्ध के समय भी उन्होंने भारत सरकार को कई क्विंटल सोना दान दिया था.

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