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दुनिया में क्यों फींकी पड़ गई मेहसी के बटन की चमक? 1905 में जापान गये थे ग्रामीण

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एक समय बिहार के मेहसी का सीप बटन उद्योग देश-विदेश में चर्चित था। बूढ़ी गंडक नदी में मिलने वाली सीप को तरासकर यहां के कुशल कारीगर आकर्षक बटन व आभूषण बनाकर दूर देश तक लोकप्रियता अर्जित कर चुके थे। हजारों लोगों के रोजी-रोटी का यह बड़ा व प्रभावी जरिया था। लेकिन तकनीकी रूप से पिछड़ने के कारण आज यह उद्योग पूरी तरह बंद होने के कगार पर है। काम न मिलने की वजह से बटन कारीगर पलायन कर चुके हैं। बार-बार मिले सरकारी आश्वासनों ने उम्मीद की लौ तो जगाई पर संजीवनी नहीं दे सके।

मेहसी में कैसे हुई बटन उद्योग की शुरुआत :

मेहसी के मदारी चक गांव निवासी व शिक्षा विभाग में सब इंस्पेक्टर रहे राय साहब भुलावन लाल को वर्ष 1905 में जापान जाने का मौका मिला। वहां उन्होंने देखा कि घर-घर में सीप का बटन बनाने का काम होता है। इससे प्रभावित होकर जब वापस मेहसी आये तो यहां बूढ़ी गंडक नदी में मिलने वाली सीप को निकाल कर हाथ से तराश कर बटन का आकार बनाया गया । उन्होंने मेहसी के कुछ मित्रो की मदद से मुजफ्फरपुर बटलर में पहली बार देशी मशीन बनाई थी। उस देशी मशीन पर एक ही आदमी काम कर सकता था ।

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पुरानी मेहसी निवासी रमाशंकर ठाकुर व चकलालू निवासी महमूद आलम अंसारी ने मशीन को पंपिंग सेट पर चलाने की नई तकनीक का ईजाद किया जिसमें पत्थर के शान पर बटन काटने का काम शुरू हुआ । जिसमें एक साथ 25 से 30 लोग काम कर सकते थे । इस प्रयास से सीप बटन उद्योग को एक नई दिशा मिली और ज्यादा से ज्यादा लोग इस रोजगार से जुड़ने लगे। पम्पिंग सेट मशीन के द्वारा काम होने से उत्पादन क्षमता पैर- चलित मशीन की अपेक्षा कई गुना बढ़ गयी। ज्यादा उत्पादन होने से आमदनी भी बढ़ी साथ ही और ज्यादा लोग इस रोजगार से जुड़ने लगे।

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सीप निर्मित आभूषण की थी भारी मांग :

वर्ष 1985 के दशक में बाजार में नायलॉन बटन आ गया जिससे सीप का बटन की मांग कम होती चली गई। इसको देखते हुए रमाशंकर ठाकुर , महमूद आलम अंसारी व महमद अलाउद्दीन अंसारी ने बटन के अलावा अन्य संभावनाओं की तलाश शुरू की। इस मकसद से महमूद आलम अंसारी ने देश के महानगरों का भ्रमण किया और उन्होंने पाया कि सीप से आभूषण भी बनाया जा सकता है। इस प्रकार आभूषण बनाने का काम आरंभ हुआ जिससे मेहसी के कारीगरों को जीविका चलाने में काफी मदद मिली और महिलाएं भी इस काम से जुड़ कर अपनी जीविका चलाने लगे। इस कड़ी में गले का माला, झूमर, टेबल लैंप आईना, इत्यादि और विभिन्न प्रकार के स्त्री साज सज्जा के लिए सीप निर्मित आभूषणों का निर्माण शुरू हुआ।

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ऐसे वस्तुओं की मांग बड़े-बड़े शहरों में होने लगी। दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, गोवा ,आदि शहरों में इन वस्तुओं की मांग बढ़ी, साथ ही भारत के सभी समुंद्री तटों पर मेहसी सीप निर्मित वस्तुओं को भेजा जाने लगा। वहाँ पर विदेशी सैलानी काफी पसंद कर खरीदा करते । विभिन्न प्रदेशों के सरकारी प्रदर्शनियों में भी मेहसी के कारीगर सम्मिलित होकर अपने वस्तुओं का प्रदर्शन और विक्रय किया करते थे।

पलायन ने बिगाड़ा खेल :

पूर्वी चम्पारण के मेहसी क्षेत्र में फलते फूलते इस कारोबार में संकट की स्थिति तब उत्पन्न हो गयी जब सीप बटन उद्योग में चीन ने 1995 के दशक में अपना कदम रखा और नई तकनीक का उपयोग कर के वैश्विक बाजार में अपनी पहुंच बढ़ाई जिसकी गुणवत्ता मेहसी निर्मित सीप बटन से बेहतर थी। परिणामस्वरूप मेहसी बटन उद्योग को बहुत नुकसान होने लगा और लोग बेरोजगार होने लगे और अपने इस कार्यक्षेत्र को छोड़ दूसरे कामों में रोजगार तलाशने यहां से पलायन करने लगे।

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इस स्थिति को महसूस करते हुए मेहसी के कुछ सामाजिक कार्यकर्ता रमाशंकर ठाकुर, चंद्रिका प्रसाद ,महमूद आलम अंसारी, अलाउद्दीन अंसारी , नूर आलम अंसारी ,शुभ नारायण यादव , हैदर इमाम और अंजार साहब जैसे लोगों ने केंद्र सरकार से अत्याधुनिक मशीन की मांग की। केंद्र सरकार ने खादी एंड विलेज इंडस्ट्रीज कॉमिसन (मिनिस्ट्री ऑफ एमएसएमई) द्वारा 85 लाख की लागत से कॉमन फैसिलिटी सेंटर (CFC) का निर्माण किया ।

उन लोगो के प्रयास से मेहसी के चकलालू क्षेत्र में केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित – स्फूर्ति योजना में कई आधुनिक मशीन लगाए गए ताकि मेहसी बटन की गुणवत्ता को बेहतर बना कर पूरी दुनिया में फिर से भेजा जा सके। इनमें कुछ मशीनें जर्मनी से भी मंगवायी गयी ताकि चीन को टक्कर दिया जा सके।

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सरकारी मदद की आस ताक रहे उद्यमी :

वर्ष 2012 में खुद सीएम नीतीश कुमार ने अपनी सेवा यात्रा के दौरान मोहमद नूर आलम अंसारी के कारखाने का निरीक्षण किए और मेहसी के लोगों से इस उद्योग का कायाकल्प करने का वादा किया। उन्होंने यहां संभावनाओं को देखते हुए बिहार सरकार के द्वारा 6 क्लस्टर देने की घोषणा किए। वर्ष 2019 में सरकार के द्वारा मेहसी के मैन मेहसी व बथना गांव में 6 करोड़ की लागत से दो क्लस्टर लगाया गया। दोनों क्लस्टर को चालू किया गया लेकिन चालू होने के कुछ दिन बाद दोनों क्लस्टर बन्द हो गये। इस दोनो क्लस्टर से छह सौ से अधिक लोगो को रोजगार मिल सकता था।

प्रतिदिन दोनों क्लस्टर का उत्पादन क्षमता 16 लाख बटन तैयार करने की है। लेकिन वर्तमान में दोनों क्लस्टर बन्द पड़े हैं। वहीं कोरोना काल में लगे लॉकडाउन के कारण यह व्यवसाय बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ जिससे सीप बटन उद्यमी व कारीगरों के समक्ष रोज़ी रोटी की समस्या आ खड़ी हुई। स्थिति को पुनः सामान्य करने के लिए सरकार द्वारा आर्थिक मदद की जरूरत है जिससे इस ऐतिहासिक सीप बटन उद्योग को पुनर्जीवित किया जा सके।

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