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टीवी व मोबाइल बनी आपके बच्चों की जान की दुश्मन, बढ़ा रहा एग्रेसन, जानें कैसे छुड़ाये लत

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ज्यादा मोबाइल-टीवी देखने से बच्चों के व्यवहार पर असर पड़ रहा है. मोबाइल-टीवी पर दिखाए जाने वाले हिंसक कार्यक्रमों को देखने के बाद बच्चों की मानसिकता पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है. उनके व्यवहार में बदलाव देखने को मिल रहा है. आभासी दुनिया का असल जीवन में ऐसा दखल घातक साबित हो रहा है. एसोचैम की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 6 से 17 साल की आयुवर्ग के ज्यादातर बच्चे एक हफ्ते में कम से कम 35 घंटे से ज्यादा टीवी से चिपके रहते हैं. वहीं ज्यादा टीवी देखने से इन बच्चों के स्वभाव में बदलाव देखने को मिल रहा है.

पटना के बच्चों पर दिखा नकारात्मक प्रभाव

बच्चों की मनोवृत्ति बदल रही है और उनमें हिंसक प्रवृत्ति में भी इजाफा हो रहा है. पटना शहर में इस तरह के मामलों में भी बढ़ोतरी हो रही है. यहां मौजूद क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट का कहना है कि स्कूल में जूनियर और सीनियर सेक्शन में पढ़ने वाले बच्चों में इस तरह के ज्यादा मामले बढ़ रहे हैं. जिसमें वह इतने एग्रेसीव हो रहे हैं कि उन्हें कई बार पता ही नहीं होता कि वे क्या कर रहे हैं. ऐसे में उनके अभिभवाक इनकी काउंसेलिंग करा रहे हैं.

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टीवी की काल्पनिक घटनाओं को बच्चे मान रहे सच

बच्चे टीवी पर आने वाले अपने पसंदीदा कार्यक्रमों को देखने के बाद हूबहू वही करने की कोशिश करते है जिसे वह अपने रोल मॉडल को टीवी पर करता हुआ देखते हैं. भले भी टीवी पर दिखाने जाने वाले इन कार्यक्रमों के प्रसारित होने से पहले बता दिया जाता है कि जो कुछ भी कार्यक्रम के दौरान दिखाने जा रहे है यह सब काल्पनिक है, लेकिन बच्चे इन कार्यक्रमों को हकीकत के रूप में देखना और जीना पसंद करते हैं. इसी वजह से बच्चों को ना केवल शॉक लगता है, घटनाओं को सच मानने लगते है उनसे डरने लगते है उनका व्यवहार भी बदल जाता है.

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माता-पिता को बच्चों को देना होगा समय

इस नए दौर में परिवारों में एक बच्चे का चलन बढ़ रहा है. इस वजह से उसको दुलार-प्यार ज्यादा मिलता है और वह जिद के कारण अपने माता-पिता पर हावी होते जा रहे हैं. माता-पिता को ऐसे में चाहिए कि बच्चों की अत्यधिक टीवी देखने की आदतों पर गंभीरता से रोक लगाये. उनसे बात करने का समय जरूर निकाले और हो सके तो उनके साथ बैठकर स्क्रीन शेयर करें.

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बच्चों के व्यवहार को ना करें अनदेखा

यदि बच्चे नाटक, टीवी या किसी कंटेंट को देखकर शॉक में जाते है. यहां उन्हें सदमा लगता है या उसके व्यवहार में बदलाव नजर आता है, तो इसे अनदेखा नहीं करें. बल्कि बच्चे का आश्वस्त करें कि आप उसकी बात समझते हैं, उससे विस्तृत बातचीत करें और उसे समझने की कोशिश करें.

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अभिभावक फिजिकल एक्टिविटी को दें बढ़ावा

बच्चों की मानसिक लचीलापन बढ़ाने वाली सामान्य गतिविधियां जैसे कि नियमित व्यायाम, स्वस्थ भोजन, कम स्क्रीन समय, नियमित नींद से जागने का समय तय करें. इसी के साथ अन्य फिजिकल एक्टिविटी को बढ़ावा दें. इसकी वजह से जहां स्क्रीन टाइम कम होगा वहीं किसी तरह का शॉक या ट्रामा है तो बाहर निकलने में मदद मिलेगी. मासूम हो कि बच्चों में बढ़ रहे एग्रेसन को छुड़ाने के लिए उनके माता-पिता का अहम योगदान होता है.

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डॉक्टर बच्चों को देते है बिहेवियर थेरेपी

क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ बिंदा सिंह के अनुसार कोरोना काल के बाद से बच्चों का मोबाइल-टीवी के प्रति रूझान के साथ स्क्रीन टाइम बढ़ा है. वह रीयल और रील लाइफ का अंतर नहीं कर पा रहे हैं. जिसकी वजह से उनके व्यवहार में परिवर्तन साफ-साफ दिखता है. मेरे पास हर दिन तीन मामले ऐसे ही आते हैं. इन बच्चों में गुस्सा, नींद ना आना, बार-बार उन बातों को दोहराना आदि शामिल है. बच्चे की उम्र और उसके व्यवहार अनुसार उनकी बिहेवियर थेरेपी दी जाती है. एकल परिवार के साथ दोनों अभिभावकों के वर्किंग होने की वजह से ऐसा होता है. बच्चों के साथ पैरेंट्स की काउंसेलिंग भी जरूरी है.

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